‘कोरोना-वाइरस’

श्रीभगवान् की प्रत्यक्षता

देखा प्रभाव प्रभु-चमत्कार का ।
टूटा दर्पण अहंकार का ।।

साधन सम्प्रभुता के बल पर,
रहे समझते खुद को ईश्वर ।
दीन-हीन साधन-हीनों को,
समझें जैसे चींटी-मच्छर ।।      

         खुद को खुदा समझने वालो !
         जन-धन पर इतराने वालो !
         संहारक-शस्त्रों के बल पर,
         दुनियां को धमकाने वालो !!

         देखो दृश्य अब प्रकृति-वार का ।
         टूटा दर्पण अहंकार का ।।

मांसाहारी हुए निरंकुश,
जीव-जन्तुओं को खाकर खुश ।
सात्विक-भोजन देती प्रकृती,
तब भी करें प्रकृति में विकृती ।।

         पालें नहीं प्रकृति-अनुशासन,
         फूले सत्ता-मद-सिंहासन ।
         करते रहे सदा अभिमानी,
         जो विरुद्ध ईश्वर के भाषण ।।

अब रोवैं ज्यों श्वान द्वार का ।
टूटा दर्पण अहंकार का ।।

अब तो यह निलज्जता छोड़ो,
परम-तत्व से मत मुख मोड़ो ।
क्षण-भंगुर है मानव-जीवन,
अब तो यह मन प्रभु से जोड़ो ।

         दया-धर्म को तुम अपनाओ,
         सदाचार सद्भाव बढाओ ।
         बार-बार ना मिले मनुज-तनु,
         सब नश्वर,समझो समझाओ ।।

 पथ 'बसन्त' ये ही उद्धार का ।
 टूटा दर्पण अहंकार का ।।

जयश्रीकृष्ण ! जयति पद्मबन्धो:सुता !!

– द्वारा आचार्य श्री बसंत जी चतुर्वेदी

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