मैं प्रकृति हूँ

देवताओं ने देवी के समीप जाकर नम्रता से पूछा- “हे महादेवी ! आप कौन हैं ?”
देवी ने कहा-
“अहं ब्रह्मस्वरूपिणी ! मत्तः प्रकृतिपुरुषात्मकं जगत् ! शून्यं चाशून्यं च । मैं ब्रह्मस्वरूप हूँ । यह प्रकृति, जङ व चैतन्य दोनों के स्वरूप वाला जगत् ,शून्य व अशून्य मुझसे ही उत्पन्न होता है ।”

जिस शक्ति के संचार से रहित शिव भी शव है, फिर मानव प्रकृति से शक्तिशाली क्योंकर व कैसे हुआ । कैसे ये आभास भी हुआ, प्रयास भी हुआ । करोड़ों-करोड़ रुपये खर्च करने के उपरांत भी जिस वातावरण को, नदी-पोखर को, आबो-हवा को मनुष्य वर्षों के प्रयास से शुद्ध ना कर पाया, उसे प्रकृति ने एक झटके में शुद्ध करके दिखला दिया ।

,,,,,,,,तदात्मानं सृजाम्यहम् का प्राक्कथन चरितार्थ हो रहा है । प्रकृति ने एक छुद्र-कीटाणु (कोरोना – Covid-19) को ला, मानव को अपनी शक्ति का भान कराया है । अब भी मानव ना समझा तो ,,,,,?

दिल्ली में वर्षों उपरांत तारे दिख रहे हैं, गंगा-यमुना व अन्य प्राणवाहिनी नदियों में सरस-अविरल धारा बह रही है, श्वासनली प्रदूषण-रहित प्राण-वायु का अनुभव कर रही है, मानवजाति जङ-स्थिर है, खग-मृग-सिंह आदि जीवधारी मनुष्य के प्रकोप का अंत समझ प्रकृति का आभार व्यक्त कर रहे हैं व स्वछन्द विचरण कर रहे हैं, वृक्ष-लताएँ खिल उठी हैं । क्या मानव अब भी समझेगा, सम्हलेगा ?

यह गांवों से शहरों की ओर पलायन, यह शहरों का झूठा आडंबर, यह प्रगति की अंधी दौड़, यह मानव-निर्मित स्वयं के संहार के कारक, प्रदूषण से प्रकृति को आहत करने की चेष्टा, हमें अंध-गर्त में ढकेल रही है व भावी पीढ़ी के महाविनाश की द्योतक है ।

“सावधान मनुष्य! ,,,,,, मैं प्रकृति हूँ ।

श्रीविद्येश माथुर-चतुर्वेद

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