महाग्रंथ- महाभारत के बारे में एक मिथक – भाग 3

सभी जानते हैं कालान्तर में महाभारत युद्ध के पश्चात् विजय पांडवों की हुई, परन्तु विजय-पराजय का निर्णय तो बहुत पहले ही हो गया था ।
सभी जानते हैं कि धृतराष्ट्र ने पूरा युद्ध का live telecast संजय की दिव्य-दृष्टि से अपने महल में बैठे-बैठे सुना था, जैसे आज हम cricket matches, समाचार आदि live-जीवंत देखते व सुनते हैं ।
युद्ध की समाप्ति पर संजय ने जब धृतराष्ट्र को पांडवों की विजय का समाचार सुनाया तो धृतराष्ट्र ने सारगर्भित शब्दों में जय-पराजय कैसे निश्चित होती है,वह बताया ।
धृतराष्ट्र बोला -” मेरी पराजय तो तब ही हो गयी थी, जब मैं ईर्ष्या-द्वेष से पल-पल सदैव भरा रहा, पांडवों के योग्य होने पर भी पुत्र मोह-तुस्टीकरण की नीति से हमेशा अन्याय करता रहा, दुःशासन द्वारा कुलवधू द्रौपदी का चीरहरण का असफल प्रयास किया गया और मैंने प्रतिकार भी नहीं किया, बार-बार पांडवों ने अपनी श्रेष्ठता सिद्ध की परन्तु राजा-decision maker होकर भी मैंने उन्हें महत्व नहीँ दिया, मेरा बेटा मेरी ना सुन कर्ण व शकुनि की ही सदैव मानता रहा, श्रीकृष्ण के भी शांति-प्रस्ताव को ठुकराया, युद्ध में मेरे सेनापति महान योद्धा भीष्म-द्रोणाचार्य ने पांडवों की विजयश्री ही चाही, अनीति पूर्वक कुलदीपक अभिमन्यु का महारथियों ने मिलकर वध किया व हर्ष मनाया, आदि-आदि ।”

ईर्ष्या-द्वेष से भरा पल-पल जलता मन, अंध-तुस्टीकरण, कुलवधू का बलात् वस्त्र हरण – स्त्री की बलात् मर्यादा-भंग का प्रयास भी, अन्याय व अनीति का प्रश्रय, आपके साथी का सर्व-संपन्न-सक्षम होने पर भी तन से तो साथ होंना पर मन से हितैषी ना होंना, विरोधी को हलका लेना, अंध-विश्वास करना, हमेशा हमारे पक्ष में ही रहेगा ऐसा किसी के बारे में भी मान्यता रखना – Taken for granted-attitude, सामने वाले को मूर्ख समझना – यह दोष महाभारत-युद्ध के, सर्वनाश के, नुकसान के, हानि के द्योतक हैं । हमें इनसे बचना चाहिए और स्वप्न में भी नहीं करना चाहिए ।

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