रक्षाबंधन के पावन-पर्व की हार्दिक शुभकामनायें।

आगामी सोमवार, 3 अगस्त 2020 को श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जायेगा। इस वर्ष, पूरा दिन रक्षाबंधन के लिए शुभकाल है, कोई भद्रा नहीं है।

इस दिन आजकल मूलतः सभी बहनें अपने भाइयों को तिलक कर दायें हाथ में रक्षा-सूत्र बांधती हैं । परन्तु यह भ्रान्ति ही है कि यह मात्र बहन-भाई का पर्व है।

आइये इस पर्व की महत्ता व इतिहास विस्तार से जानते हैं ।

सनातन-व्यवस्था में रक्षा करने व रक्षित होने के विश्वास व निश्चय हेतु किये गये संकल्प को भी पर्व का रूप दिया गया है। हर्ष व उल्लास तो हमारे यहाँ हर पर्व के प्राण हैं। इस दिन ही विशेषतः कई ऐसे उद्धरण मिलते हैं कि ‘रक्षित व रक्षक’ के बीच अत्यंत प्रगाढ़ संबंध हो जाते हैं व एक व्यक्ति दूसरे की रक्षा हेतु संकल्पित होता है और दूसरा आश्वस्त कि मेरे साथ रक्षक है तो मेरे सारे कार्य निर्विघ्न रूप से हो जायेंगे। यहां कोई बड़ा या छोटा नहीं अपितु विश्वास की डोर से बंधा प्रगाढ़ प्रेम है, जो संबंधों को और मजबूत करता है, विश्वास में रखता है व संकल्पित होता है।

रक्षा-सूत्र से उपजे मधुर बंधन का मंत्र ही इस पर्व को स्पष्ट कर देता है।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

अर्थात् – “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (रक्षासूत्र)! तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो – अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)”

पूर्वकाल में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही कई ऐसे वृत्तान्त मिलते हैं जिससे यह दिन लोकमानस में रच-बस गया और लाखों-लाख साल से यह मधुर संबंध बनाने वाला पर्व मनाया जा रहा है।
आइए उन पूर्वकाल के वृतान्तों को देखते हैं –

प्रमाणिकता से सर्वप्रथम तो रक्षा-सूत्र पत्नी ने पति को – देवासुर संग्राम में जाते हुए इंद्र को उनकी पत्नी शची ने बांधा था।
भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नज़र आने लगे। देवराज इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां गुरु बृहस्पति की आज्ञा से इन्द्र की पत्नी इंद्राणी ने रेशम का धागा मन्त्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बाँध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। विश्वास है कि इन्द्र इस लड़ाई में इसी धागे की मन्त्र शक्ति व पत्नी के निश्छल विश्वास से ही विजयी हुए थे।

विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि श्रावण की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रीव के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिये फिर से प्राप्त किया था व वेदों की रक्षा की।

स्कन्ध पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामनावतार नामक कथा में रक्षाबन्धन का प्रसंग मिलता है। कथा कुछ इस प्रकार है- भक्त प्रह्लाद के पौत्र, दानवेन्द्र राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर इंद्र से स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयत्न किया तो इन्द्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँचे। गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी। भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्योहार ‘बलेव’ नाम से भी प्रसिद्ध है। कहते हैं बलि रसातल में चला तो गया परन्तु बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। भगवान के न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी देवर्षि-नारद के बताये उपाय के अनुसार इसी श्रावणी पूर्णिमा के दिन राजा बलि के पास जाकर, रक्षा-सूत्र से बांधती हैं व अपने पति भगवान विष्णु को बलि के वचन-बंधन से मुक्त कर अपने साथ अपने धाम को ले जाती हैं।

महाभारत में भी रक्षाबन्धन से सम्बन्धित श्रीकृष्ण और द्रौपदी का एक और वृत्तान्त भी मिलता है। जब श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ के दौरान सुदर्शन-चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई व रक्त बहने लगा। द्रौपदी ने उसी समय अपनी रेशम की साड़ी फाड़कर उनकी घायल उँगली पर पट्टी बाँध दी। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। श्रीकृष्ण ने इस उपकार का बदला बाद में दुःशासन द्वारा द्रौपदी के चीरहरण के समय द्रौपदी की साड़ी को बढ़ाकर चुकाया व उस द्यूत-सभा में द्रौपदी की लाज रखी।
कहते हैं (श्रुति है – स्मृति है) परस्पर एक दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना इसी श्रावणी-पूर्णिमा के दिन में यहीं से एक पर्व के रूप में शुरू हुई व इसी दिन से यह रेशम का धागा बाँधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।

राखी के साथ एक और आधुनिक काल की प्रसिद्ध कहानी जुड़ी हुई है। कहते हैं, मेवाड़ की रानी कर्मावती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्व सूचना मिली। रानी ने मुगल बादशाह हुमायूँ को रक्षा-सूत्र भेज कर रक्षा की प्रार्थना की। हुमायूँ ने रक्षा-सूत्र की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मावती व उसके राज्य की रक्षा की।

योद्धा जब लड़ाई पर जाते थे तब उनकी पत्नियां, माताएं, बहनें उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ साथ हाथ में रेशमी धागा इस विश्वास के साथ बांधती हैं कि यह धागा उन्हैं विजयश्री के साथ वापस ले आयेगा। आज भी सेना में जवान जब युद्ध पर जाते हैं तो पुरोहित उन्हें रक्षा-सूत्र बांधते हैं व साथ ही हथियारों व उपकरणों को रक्षा-सूत्र बांधने की परंपरा है।

रक्षाबन्धन आत्मीयता और स्नेह के बन्धन से रिश्तों को मज़बूती प्रदान करने का पर्व है। यही कारण है कि इस अवसर पर न केवल बहन-भाई को ही अपितु अन्य सम्बन्धों में भी रक्षा-सूत्र (या राखी) बाँधने का प्रचलन है। गुरु शिष्य को रक्षासूत्र बाँधता है तो शिष्य गुरु को। भारत में प्राचीन काल में जब स्नातक अपनी शिक्षा पूर्ण करने के पश्चात गुरुकुल से विदा लेता था तो वह आचार्य का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उसे रक्षासूत्र बाँधता था जबकि आचार्य अपने विद्यार्थी को इस कामना के साथ रक्षासूत्र बाँधता था कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में उसका समुचित ढंग से प्रयोग करे ताकि वह अपने ज्ञान के साथ-साथ आचार्य की गरिमा की रक्षा करने में भी सफल हो।

इसी परम्परा के अनुरूप आज भी किसी धार्मिक विधि-विधान से पूर्व पुरोहित यजमान को रक्षासूत्र बाँधता है और यजमान पुरोहित को। इस प्रकार दोनों एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करने के लिये परस्पर एक दूसरे को अपने बन्धन में बाँधते हैं।

ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बंधियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) को भी राखी बाँधी जाती है। कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। 

रक्षाबंधन के दिन रक्षा-सूत्र बांधने वाले को कुछ उपहार देने का प्रचलन भी पर्व की मर्यादा बढ़ाता है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को रक्षा-सूत्र बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है।

रक्षाबन्धन के अवसर पर कुछ विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं जैसे घेवर, शकरपारे, नमकपारे और घुघनी।

उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं। इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।

बाबा अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर रक्षाबन्धन के दिन सम्पूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहाँ का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है।

महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार ‘नारियल पूर्णिमा’ या ‘श्रावणी’ के नाम से विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिये नारियल अर्पित करने की परम्परा भी है।

राजस्थान में रामराखी और चूड़ाराखी या लूंबा बाँधने का रिवाज़ है। रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है। इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुँदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बाँधी जाती है। चूड़ा-राखी भाभियों की चूड़ियों में बाँधी जाती है। जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी ही नहीं बाँधी जाती, बल्कि दोपहर में पद्मसर और मिनकानाडी पर गोबर, मिट्टी और भस्मी से स्नान कर शरीर को शुद्ध किया जाता है। इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्त्ता अरुंधती, गणपति, दुर्गा तथा सप्तर्षियों के पूजास्थल बनाकर उनकी मन्त्रोच्चारण के साथ पूजा करते हैं।उनका तर्पण कर पितृॠण चुकाया जाता है। धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन किया जाता है, वहीं रेशमी डोरे से राखी बनायी जाती है। राखी को कच्चे दूध से अभिमन्त्रित करते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है।

तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के ब्राह्मण इस पर्व को अवनि-अवित्तम कहते हैं। यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।

इस दिन यजुर्वेदीय ब्राह्मण 6 महीनों के लिये वेद का अध्ययन प्रारम्भ करते हैं। इस पर्व का एक नाम ‘उपक्रमण‘ भी है जिसका अर्थ है- नयी शुरुआत।

व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबन्धन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं।

आशा है इस पर्व की विस्तृत जानकारी से आप सभी लाभान्वित हुये होंगे। आप सभी को पुनः रक्षाबंधन के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई।

हम आप सभी के लिये ऐसे ही हर पर्व पर रोचक तथ्य लाते रहेंगे।

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