शिव- भारत का लोकमन
शिव तो भारत का लोकमन हैं, वह आर्य भी है ,अनार्य भी है , वह द्रविड भी है , वह कोलकिरात भी है ।
वह क्या नहीं है ?
वह जितना देवों का है उतना ही असुरों का है ।
शिव मानो भारतीयता की मूर्तिमान व्याख्या हैं ।
इससे बडी एकात्मता कहां मिलेगी ? शिव भारत भावरूप हैं ।
पशुपति है। वह शिव है और रुद्र भी है ।
तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में ।
स्मशानवासी है ।वह विषपायी है ।
सबको अमृत बांट कर वह जहर पी जाता है ।”
शिव से बडा कोई वैष्णव है क्या ?
वैष्णवानां यथा शंभु :।
वह विष्णु में ऐसा रमा कि हरिहर हो गया और शक्ति में ऐसा रमा कि अर्धांगीश्वर हो गया ।
उमा शिव को पाने के लिये तपस्या कर रही थी।स्वयं शिव एक बूढेबाबा का वेश धारण करके आगये किसे पाना चाहती हो? शिव ? अरे वह, जो भिक्षुक है?भयंकर है?स्मशानवासी है? चिताभस्म धारण करता है?अनार्य है?
उमा को क्रोध आया, अरे बाबा, क्या बोलते हो? अकिंचन: सन प्रभव: स सम्पदां। अकिंचन होते हुए भी वे समस्त ऐश्वर्य का मूल हैं।अमंगल वेश होते हुए वे समस्त मंगल के कारण हैं।
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महादेव की बरात का कुनबा प्रागैतिहासिक- भारत के गणगोत्रों का कुनबा है।
हस्तिगणगोत्र का देव गणेश ,मूषक,नागजाति का देव सर्प,चन्द्र-उपासकों का चन्द्र,नन्दीगण,मयूरगण,गंगा आदि कितने ही देव महादेव में समाये हुए हैं?~
पुराणों में ऋषिलोग लिंगपूजा का निषेध करते दिखाई देते हैं>>>
यस्मात्पापत्वयास्माकं आश्रमो यं विडंबित:।तस्मात लिंगं पतत्वाशु तवैव वसुधातले।[पद्म] >>>>विशेष देखें : भारत में नाना संस्कृतियों का संगम :आचार्य क्षितिमोहनसेन।
वैसे तो पुराणों में शिवकथाओं का विस्तार समुद्र की तरह है,
फिरभी जनपदों में शिव-कथा-चक्र वाचिक-परंपरा में निरन्तर प्रवाहित हो रहा है।
आदि-वासियों में अपनी-अपनी जातियों की उत्पत्ति को शिव से जोडा जाता है।
उदाहरण :
एक दिन शिव वन में विचरण कर रहे थे।वे एक लता पर मुग्ध हो गये।
लता से विवाह कर लिया।काले रंग का पुत्र जनमा।बडा हुआ।
उसने शिव के नन्दी को खूब मारा।
शिव ने नाराज होकर उसे घर से निकाल दिया।
कोलभील इसी पुत्र की सन्तान हैं।
एक दिन पार्वती भील-कन्या का रूप धारण करके नाचने लगीं!
महादेव उस रूप पर मोहित हो गये और वे भी भील-कन्या के साथ नाचने लगे!
शिव ने भील-कन्या से प्रणयदान मांगा!
भील-कन्या ने उन्हें खूब नचाया,छकाया और कहा कि >> मुझे पत्नी बनाओ तो रतिदान करूं!
महादेव बोले > ठीक है!
भील-कन्या बोली >लेकिन मैं पार्वती के साथ नहीं रहूंगी!
शिव बोले> उसे तो मैं पीहर भेज दूंगा।
अब पार्वती अपने असली रूप में आगयीं, बोली > देख लिया तुम्हारे प्यार का ढोंग!!
अब मैं तो पीहर जा रही हूं!
शिव अपनी जटाओं से पार्वती के पैर पोंछने लगे और उन्हें मना कर घर लाये।
यह राजस्थान के भील-अंचल की कथा है।
दलित-महिलाऎं शिवजी का एक गीत गा रही थीं, उसका सारांश है
पार्वती ने कहा कि हमें चूडियां पहनाओ!
शिवजी बोले > हमारे पास पैसा ही नहीं है,चूडियां कहां से लायें?
पार्वती ने कहा कि > सारे जगत में तुम्हारी साख है,कहीं से उधार मिल जायेगा!
शिवजी बोले >हमारे पास न गांव है, न घर,न खेत, हमें कौन उधार देगा?
अच्छा, तो तुम्हारे पास चिलम के लिये तो पैसा है?चूडियों के लिये पैसा नहीं है?नन्दी को गिरवी रख दो, हमें चूडियां पहनाओ!!
इस पर शिवजी नाराज हो गये,्देखो ,इसी के बल पर तो मैं नौखंडी धरती पर विचरण करता हूं,इसका नाम मत लेना!
आप देश के विभिन्न जनपदों में शिवगीतों और शिवकथाओं को सुनें!
देश के भिन्न-भिन्न लोगों ने शिव के रूप में अपने को ही खोजा है,अपने को
ही पाया है??
अयं स भुवनत्रय-प्रथित संयमी शंकरो
विभर्ति वपुषाधुना विरह-कातर: कामिनीम् ।
अनेन किल निर्जिता वयमिति प्रियाया: करं
करेण परिलालयं जयति जात हासस्मर: ।
कामदेव से एक दिन रति ने पूछा कि >>>>
आप को तो भगवती कामेश्वरी ने जगद्विजयी होने का वरदान दिया था ।
आपको जीतने वाला कौन हो सकता है ?
कामदेव ने कहा >> एक दिन तुम्हें वह रहस्य भी दिखा दूँगा ।
वह दिन जल्दी ही आ गया ।
उस दिन कामदेव को अर्द्धांगीश्वर भगवान शिव के दर्शन हो गये ।
कामदेव ने रति का हाथ दबाया ।
देखो देखो , ये हैं अर्द्धनारीश्वर ! भगवान शिव ! देख रही हो न , ये एक पल के लिये भी प्रिया का वियोग नहीं सह सकते , एक निमिष के लिये भवानी को नहीं छोड़ सकते
, इसलिये इन्होंने भवानी को अपने आधे अंग में धारण कर लिया है ।
ये जल और लहर या शब्द और अर्थ की तरह हर समय मिले ही रहते हैं !
मजे की बात यह है कि इन्हें दुनियाँ जितेन्द्रिय कहती है !
बस , इन्हीं महाराज ने हमको जीत रक्खा है ।
हा हा हा !
शिव-रूप : भारत : भारतवर्ष की एकता के दिव्य- सूत्र
द्वादशज्योतिर्लिंग के भूगोल को देखें, तो लगेगा कि समस्त भारत शिवमय है >
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैलेमल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारममलेश्वरम् ॥
परल्यां वैजनाथं च डाकिन्यां भीम शंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमी तटे।
हिमालये तु केदारं ध्रुष्णेशं च शिवालये ॥
केदारनाथ हिमालय की दुर्गम पर्वत श्रृंखलाओं पर , वैद्यनाथ- झारखंड में ,महाकाल- मध्यप्रदेश के उज्जैन में, सोमनाथ- गुजरात के सौराष्ट्र में ,ओंकारेश्वर- मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर ,त्रयम्बकेश्वर- महाराष्ट्र के नासिक गोदावरी नदी के किनारे, श्रीशैलम- आंध्र प्रदेश के कर्नूल मल्लिकार्जुन महादेव , रामेश्वर- तमिलनाडु में , नागेश्वर- गुजरात में ,भीमशंकर- महाराष्ट्र की सह्याद्रि पर्वत श्रृंखला पर, विश्वनाथ- शिव के त्रिशूल पर बसी काशी में ,घृष्णेश्वर- महाराष्ट्र में।
तमिल में इरैयनारपाट्टु के गीत ,चिदम्बरम में नटराज,तिरुवण्णामलै: जहां पार्वती ने शिव का सान्निद्ध्य प्राप्त करने के लिये तप किया था।।कश्मीर के अमरनाथ।नेपाल के पशुपतिनाथ।
कैलास -पर्वत के बिना तो शिव का ध्यान भी संभव कैसे होगा?बंगाल में दक्षिणेश्वर उन्मत्त-भैरव तारकनाथ,केरल के अन्तिमहाकालन,आन्ध्र के श्रीवैंकटेश्वर,गोआ के श्रीमंगेश, महाराष्ट्र के बालुकेश्वर,कुरुक्षेत्र के स्थाण्वीश्वर ! भारत शिव-रूप है !
शिव ::अष्ट्मूर्ति :प्रत्यक्ष -रूप
या सृष्टि: सृष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री
ये द्वे कालं विधत्त: श्रुतिविषयगुणा: या स्थिता: व्याप्य विश्वम् ।
यामाहु: सर्वबीज -प्रकृतिरिति यया प्राणिन: प्राणवन्त: ।
प्रत्यक्षाभि: प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिष्टाभिरीश:।
शाकुन्तल
महाकवि कालिदास ने शाकुन्तल में महाकवि ने अष्टमूर्ति शिव का साक्षात् किया है ! अष्टमूर्ति शिव की वन्दना की है !
शिव का अष्ट्मूर्ति प्रत्यक्ष -रूप
1 -जो आद्यसृष्टि है अर्थात् जल ।
2 _हवि का वहन करने वाला अग्नि !
3- –जो होता है । यजमान :
जीव : ,जो जीवन रूप हवन-यज्ञ कर रहा है ।
यज्ञ : जीवन है ! हवि :: जीवन के संसाधन :
यज्ञ ::: हवन में समर्पित किया जाने वाला द्रव्य ।
4 – 5- – सूर्य और चन्द्रमा ::: जो काल को दिन और रात में विभक्त करते हैं ।
6 -जो श्रुति [कान ] का विषय अर्थात् शब्द -ध्वनि का केन्द्र है >>
आकाश !
आकाश का विषय शब्द -ध्वनि है |
7 – जो समस्त बीजों की प्रकृति है अर्थात् धरती ।
8-और जिससे समस्त प्राणी प्राणवान् हैं >>> अर्थात् वायु !
यह शिव की प्रत्यक्ष देह है ।
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शिवसे बडा सर्वहारा कौन है ?
यदि लोकवार्ता का कोई अध्येता भारत के लोकमानस का अध्ययन करना चाहता है तो उसे भोलानाथ से स्पष्ट
कोई दूसरा सूत्रग्रन्थ नहीं मिल सकता ।
सचाई तो यह है कि शिव को छोड कर भारत के लोकमानस का कोई भी अध्ययन पूरा हो ही नहीं सकता है ?
लोकमानस की वह विराट भावसंपदा शिव की मंगलमूर्ति में समाहित है ।
भारत के वे सभी कबीले उनके बराती हैं ।
भारत में विविधताऒं की , अनेकता की , भेद-भिन्नता की बात करते हैं
किन्तु आप गौर से देखिये क्या सचमुच वे सारे भेद शिव में आकर एकरस
एकाकार हो गये हैं !
उसके यहां कोई जातिभेद है न वर्णभेद ?
शिव से बडा अघोरी भी कौन है , छूआछूत उसकी देहरी को भी नहीं लांघ
सकी ।
शिव से बडा कोई वैष्णव है क्या ? वैष्णवानां यथा शंभु :।
वह विष्णु में ऐसा रमा कि हरिहर हो गया और शक्ति में ऐसा रमा कि
अर्धांगीश्वर हो गया । उससे बडा सर्वहारा कौन है ?
भारत के आम-आदमी को देखिये और फिर शिव को देखिये !
कितना भोला है , कितना सरल-सहज है ,किन्तु प्रलयंकर भी वही है ।
लेकिन यह लोक जहर ही तो पीता है । शिव वह विश्वंभर है ।
– द्वारा डॉ0 श्री राजेन्द्र रंजन जी चतुर्वेदी
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