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परशुराम – एक युग-पुरुष

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“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।”

अक्षय-तृतीया के शुभ दिन जन्मे महर्षि जमदग्नि व रोहिणी के पांचवे पुत्र ‘राम’ परशु (कुल्हाड़ी) धारण करने के कारण परशुराम कहलाये ।

आठ अमर प्राणियों में से एक परशुराम का स्वरूप –
अग्रतः चतुरो वेदाः पृष्ठतः सशरं धनुः ।
इदं ब्राह्मं इदं क्षात्रं शापादपि शरादपि ।।

जिन्हें चार वेद मौखिक हैं एवं पीठपर धनुष्य-बाण है, जिसमें ब्रह्मतेज एवं क्षात्रतेज – दोनों हैं, शाप व बाण दोनों से ही जो पराजित कर सकते हैं, ऐसी उनकी विशेषता है ।

महर्षि भृगु के पुत्र ऋचिक व राजा गाधि (ऋषि विश्वामित्र के पिता) की पुत्री सत्यवती के पुत्र महर्षि जमदग्नि हुये । महर्षि जमदग्नि व राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका के पांच पुत्र हुये –
रेणुका के पाँच पुत्र हुए—

  1. रुमण्वान
  2. सुषेण
  3. वसु
  4. विश्वावसु तथा
  5. राम (परशुराम)

परशुराम जी को भगवानि शिव से वरदान में विद्युदभि नामक परशु व ऋचिक ऋषि से शार्ङ्ग नामक धनुष मिला, जिसे वे सदैव धारण करते हैं ।

आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचिक के आश्रम में प्राप्त हुई । परशुराम ने अधिकांश विद्याएँ अपनी बाल्यावस्था में ही अपनी माता की शिक्षाओं से सीख ली थीं (वह शिक्षा जो 8 वर्ष से कम आयु वाले बालको को दी जाती है)। वे पशु-पक्षियों तक की भाषा समझते थे और उनसे बात कर सकते थे। यहाँ तक कि कई खूँख्वार वनैले पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे।

 कहा जाता है कि भारत के अधिकांश ग्राम उन्हीं के द्वारा बसाये गये। जिस मे कोंकण, गोवा एवं केरल का समावेश है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पिछे धकेलते हुए नई भूमि का निर्माण किया। और इसी कारण कोंकण, गोवा और केरला मे भगवान परशुराम वंदनीय है।

परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। वे केरल के मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु की उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं।

महान मातृ-पितृ-भक्त परशुराम ने एक बार अपने पिता की आज्ञा से अपनी माँ रेणुका का सर काट दिया था और पिता की प्रसन्नता पर वरदान स्वरुप माता को पुनः जीवित भी करवा लिया ।

नर्मदा के किनारे बसे महिष्मती राज्ये के अनाचारी राजा सहस्त्रबाहू-कार्त्तवीर्यार्जुन के द्वारा कामधेनु गाय के अपहरण के दण्ड-स्वरूप उसकी हजार बाहों को काट कर उसका मान मर्दन किया ।
तब सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदग्नि को मार डाला। परशुराम की माँ रेणुका पति की हत्या से विचलित होकर उनकी चिताग्नि में प्रविष्ट हो सती हो गयीं।

अपने पिता के शरीर पर 21 बाण लगे देख हैहयवंशी क्षत्रियों का 21बार संहार किया । तदोपरान्त उन्होंने सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे।

भगवान गणेश को एकदंत करने वाले महान शास्त्र व शस्त्रवेत्ता परशुराम पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था।

गंधमादन पर्वत पर जाकर भगवान दत्तात्रेय से श्रीविद्या की दीक्षा ली व त्रिपुरा रहस्य प्राप्त किया । परशुरामकल्पसूत्र उनकी ही रचना है ।

देवव्रत-भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण उनके ही शिष्य थे । कहते हैं कि कल्कि अवतार को भी शास्त्रों व शस्त्रों का ज्ञान भगवान परशुराम ही देंगे।

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परशुरामस्तोत्रम्

कराभ्यां परशुं चापं दधानं रेणुकात्मजम् ।
जामदग्न्यं भजे रामं भार्गवं क्षत्रियान्तकम् ॥ १ ॥
नमामि भार्गवं रामं रेणुकाचित्तनंदन ।
मोचिताम्बार्तिमुत्पातनाशनं क्षत्रनाशनं ॥ २ ॥
भयार्तस्वजनत्राणतत्परं धर्मतत्परम् ।
गतवर्गप्रियं शूरं जमदग्निसुतं मतम् ॥ ३ ॥
वशीकृतमहादेवं दृप्तभूपकुलान्तकम् ।
तेजस्विनं कार्तवीर्यनाशनं भवनाशनम् ॥ ४ ॥
परशु दक्षिणे हस्ते वामे च दधतं धनुः ।
रम्यं भृगुकुलोत्तंसं घनश्यामं मनोहरम् ॥ ५ ॥
शुद्धं बुद्धं महाप्रज्ञामंडितं रणपण्डितं ।
रामं श्रीदत्तकरुणाभाजनं विप्ररंजनं ॥ ६ ॥
मार्गणाशोषिताब्घ्यंशं पावनं चिरजीवनं ।
य एतानि जपेद्रामनामानि स कृती भवेत ॥ ७ ॥
॥ इति ।।

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– द्वारा श्रीविद्येश माथुर-चतुर्वेद

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