भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनन्त चतुर्दशी या अनन्त-चौदस होती है व इसी दिन आमजन द्वारा श्रीगणेश की चतुर्थी के दिन मिट्टी की स्थापित मूर्ति को दस दिन उपरांत बहते पानी में विसर्जन की परंपरा है।
अनन्त चतुर्दशी भगवान विष्णु का समर्पित पर्व है, जिस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के अनन्त रूप की पूजा की जाती है। इसी दिन दस दिनों से चला आ रहा गणेश उत्सव का समापन भी होता है।
इस दिन व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत अवतारों की पूजा की जाती है। किंवदंती-अनुसार इस दिन सर्वप्रथम पांडवो नें व्रत किया था। जब महाभारत के युद्ध से पहले पांडवों ने जुआ खेला था, तब उनका सारा धन नष्ट हो गया। तब उन्होंने भगवान कृष्ण से प्रार्थना करते हुए उपाय पूछा, तब श्रीकृष्ण जी ने कहा की जुआ खेलने के कारण लक्ष्मी तुमसे रुठ गई हैं। अनंत चतुर्दशी के दिन आपको भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस व्रत को करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं।
अनन्त चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर चौकी पर कलश स्थापित करें। इसके बाद कलश पर भगवान विष्णु की तस्वीर भी रखें। एक सूती धागे को कुमकुम, केसर और हल्दी से रंगें और अनन्त सूत्र बनाएं व इस सूत्र में चौदह गांठें लगाएं। इस सूत्र को भगवान विष्णु के समक्ष रख दें, अब विधिवत् भगवान विष्णु और अनंत सूत्र की पूजा करें।
गणेश चतुर्थी पर बप्पा को घर पर लाया जाता है और अनन्त-चतुर्दशी की तिथि पर श्रद्धाभाव से गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। श्रीगणेश विसर्जन मुंबई समेत पूरे देश में इस दिन होता है।
ऋद्धि-सिद्धि और बुद्धि के दाता भगवान गणेश का जन्म-महोत्सव मनाने का पर्व, श्रीगणेश चतुर्थी की तिथि से आरंभ होता है, जो अनन्त-चतुर्दशी के दिन गणेश विसर्जन के साथ समाप्त होता है।
गणेश विसर्जन से पूर्व विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है व उनकी प्रिय चीजों का भोग लगाया जाता है और पूजा और आरती के बाद भक्तिभाव से विसर्जन किया जाता है। हर दिल श्रीगणेश से अगले वर्ष जल्दी आने की प्रार्थना करता है।
पौराणिक कथा के मुताबिक महर्षि वेदव्यास ने भगवान गणेश को महाभारत को लेखन कार्य की जिम्मेदारी सौंपी थी व साथ ही गणेश जी को बिना रुके लेखन कार्य को जारी रखना था। महाभारत की कथा वेद व्यास जी ने भगवान गणेश जी को लगातार सुना रहे थे जिस कारण गणेश जी बिना रुके कथा को लिखते रहे।
महाभारत की कथा आरंभ करने के दसवें दिन जब महर्षि वेदव्यास जी ने अपनी आंखें खोलीं तो पाया कि गणेश के शरीर का तापमान बहुत बढ़ा हुआ है। महर्षि वेदव्यास ने गणेश जी के शरीर का ताप कम करने के लिए तुरंत पास के एक जलकुंड से ठंडा जल लाकर गणेश जी के शरीर पर डालना आरंभ कर दिया। जिस दिन गणेश जी के शरीर पर जल प्रवाहित किया उस दिन भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी की तिथि थी। इसी कारण गणेश जी का विसर्जन चतुर्दशी की तिथि को किया जाता है।
।। जय जय श्री लक्ष्मीनारायण ।। जय जय श्रीगणेश ।।
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