महाग्रंथ- महाभारत के बारे में एक मिथक
“यो विद्याच्चतुरो वेदान् साङ्गोपनिषदो द्विजः ।
न चाख्यानमिदं विद्यान्नैव स स्याद् विचक्षणः ।।
अर्थशास्त्रमिदं प्रोक्तं धर्मशास्त्रमिदं महत् ।
कामशास्त्रमिदं प्रोक्तं व्यासेनामितबुद्धिना ।।” 382-383
जो द्विज अंगों और उपनिषदोंसहित चारों वेदों को जानता है, परन्तु इस महाभारत-इतिहास को नहीं जानता, वह विशिष्ट विद्वान नहीं है । असीम बुद्धि वाले महात्मा व्यास ने यह अर्थशास्त्र कहा है । यह महान धर्मशास्त्र भी है, इसे कामशास्त्र भी कहा गया है (और मोक्षशास्त्र तो यह है ही )।
“अस्याख्यानस्य विषये पुराणं वर्तते द्विजः ।
अन्तरिक्षस्य विषये प्रजा इव चतुर्विधाः ।।386।।
द्विजवरो! इस महाभारत-इतिहास के भीतर ही अठारह पुराण स्थित हैं, ठीक उसी तरह, जैसे आकाश में ही चारों प्रकार की प्रजा (जरायुज, स्वेदज, अण्डज और उद्भिज्ज) विद्यमान हैं ।
“अनाश्रित्यैतदाख्यानं कथा भुवि न विद्यते ।
आहारमनपाश्रित्य शरीरस्येव धारणम् ।।388।।
जैसे भोजन के बिना शरीर नहीं रह सकता, वैसे ही इस पृथ्वी पर कोई भी ऐसी कथा नहीं है जो इस महाभारत का आश्रय लिये बिना प्रकट हुई हो ।
– पर्वसंग्रहपर्व (द्वितीयोऽध्यायः)
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sanjay kumar Sharma
Ye nischey hi aapke liye satsang mai pravachan karne ki aur le jata hai jo bahut hi shaandar rahega.