दिल्ली के रिजर्वबैंक-भवन के मुख्यद्वार पर एक ओर
लक्ष्मी की विशाल प्रतिमा है और दूसरी ओर यक्षराज कुबेर की ।
कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में धनागार में कुबेर की प्रतिमा स्थापित करने का निर्देश दिया है !
जो स्थान देव-जाति में इन्द्र का है ,वही स्थान यक्षों में कुबेर का है ।
कुबेर ने यक्षों का व्यापार बढ़ाया ,स्वर्ण की खोज की , इन्द्र से मित्रता स्थापित की। सोने को सबसे पहले कुबेर ने ही पिघलाया था !
गंधर्व-जन इनके मित्र थे ।
कुबेर शिव के उपासक थे । अलकापुरी इनकी राजधानी थी ।
गंधमादनपर्वत , मेरुपर्वत और कैलास-पर्वत इनके अधिकार में थे ।
इनके पास स्वर्ण का अक्षयकोश माना जाता है ।
राक्षस-गण यक्षों की ही एक शाखा थी ।
मणिभद्र ,पूर्णभद्र , मणिमत् ,मणिकंधर आदि कुबेर के गण थे । इनकी राजसभा में एक सौ नारियां[अप्सरायें] थीं ,
कुबेर विश्रवा के पुत्र थे , इनकी मां का नाम इड़विड़ा था ! नलकूबर इनका पुत्र था। मीनाक्षी को कुबेर की पुत्री बतलाया गया है! कुषाण-काल की मूर्तियों में लक्ष्मी को कुबेर-पत्नी के रूप में अंकित किया गया है ! इसके पास पुष्पक- विमान था , जो बाद में रावण ने इससे युद्ध करके लिया था ।
दश दिक्पालों में एक कुबेर भी हैं ,उत्तर-दिशा का स्वामी , इनको लोकपाल भी कहा जाता है !
वेदमन्त्रों ने कुबेर को वैश्रवण , महाराज और राजाधिराज के रूप में स्मरण किया है >>
राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे !
स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो दधातु !
[विश्रवा के चार पत्नियों मॆं से इड़विड़ा के कुबेर और केशिनी के रावण ,कुंभकर्ण ,विभीषण पुत्र हुए थे ।]
– सौजन्य से डॉ0 श्री राजेन्द्र रंजन जी चतुर्वेदी
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NoysisBup
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