(देवशयनी-एकादशी, आषाढ़ी-एकादशी, पद्मा-एकादशी और हरि-शयनी एकादशी)
विशेष- (इस बार अधिक मास होने के कारण यह लगभग 5 महीने का है)
महत्व –
देवशयनी एकादशी के बाद चार महीने तक सूर्य, चंद्रमा और प्रकृति का तेजस-तत्व कम हो जाता है, इसलिए कहा जाता है कि देवशयन हो गया है। शुभ-शक्तियों के कमजोर होने पर किए गए कार्यों के परिणाम भी शुभ नहीं होते। अतः चातुर्मास के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
चातुर्मास के दौरान सभी धाम ब्रज में आ जाते हैं। इसलिए इस दौरान ब्रज की यात्रा बहुत शुभकारी होती है जो हर किसी के लिए श्रेयस्कर है।
पुराणों के अनुसार इन चार महीनों के दौरान भगवान विष्णु पाताल लोक के राजा बलि के पास रहते हैं इसलिए कहा जाता है कि श्री हरि निद्रा में हैं।
वामन पुराण के मुताबिक असुरों के राजा बलि ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था, राजा बलि के आधिपत्य को देखकर इंद्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास मदद मांगने पहुंचे। देवताओं की पुकार सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए, वामन भगवान ने बलि से तीन पग भूमि मांगी, पहले और दूसरे पग में भगवान ने धरती और आकाश को नाप लिया, अब तीसरा पग रखने के लिए कुछ बचा नहीं थी तो राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग उनके सिर पर रख दें।
भगवान वामन ने ऐसा ही किया, इस तरह देवताओं की चिंता खत्म हो गई। वहीं भगवान राजा बलि के दान-धर्म से बहुत प्रसन्न हुए, उन्होंने राजा बलि से वरदान मांगने को कहा तो बलि ने उनसे पाताल में बसने का वर मांग लिया, बलि की इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को पाताल जाना पड़ा। भगवान विष्णु के पाताल जाने के बाद सभी देवतागण और माता लक्ष्मी चिंतित हो गए, अपने पति भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए माता लक्ष्मी गरीब स्त्री बनकर राजा बलि के पास पहुंची और उन्हें अपना भाई बनाकर राखी बांध दी, बदले में भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया.
पाताल से विदा लेते वक्त भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में वास करेंगे, पाताल लोक में रहने की इस अवधि को योगनिद्रा माना जाता है।
एक राजा के राज्य में बरसात नहीं हो रही थी। सारे लोग बहुत परेशान थे और अपनी परेशानी लेकर राजा के पास पहुंचे। हर तरफ अकाल था। ऐसी दशा में राजा ने भगवान विष्णु की पूजा की। देवशयनी एकादशी का उपवास रखा। इसके फलस्वरूप भगवान विष्णु और राजा इंद्र ने बरसात की और राजा के साथ-साथ सभी लोगों के कष्ट दूर हो गए
हरिशयन-मंत्र –
“सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्।
विबुद्दे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्।”
(हे प्रभु आपके जगने से पूरी सृष्टि जग जाती है और आपके सोने से पूरी सृष्टि, चर और अचर सो जाते हैं। आपकी कृपा से ही यह सृष्टि सोती है और जागती है। आपकी करुणा से हमारे ऊपर कृपा बनाए रखें।)
इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजन की जाती है ताकि चार महीने तक भगवान विष्णु की कृपा बनी रहें।
— मूर्ति या चित्र रखें।
– दीप जलाऐं🪔
–पीली वस्तुओं का भोग लगाऐं
– पीला वस्त्र अर्पित करें।
– भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
– तुलसी या चंदन की माला से जप करें📿
– आरती करें🪔📿🕉🚩
– विशेष हरिशयन मंत्र का व ॐ नमो भगवते वासुदेवाय उच्चारण करें
संकल्प मंत्र-
“सत्यस्थ: सत्यसंकल्प: सत्यवित् सत्यदस्तथा।
धर्मो धर्मी च कर्मी च सर्वकर्मविवर्जित:।।
कर्मकर्ता च कर्मैव क्रिया कार्यं तथैव च।
श्रीपतिर्नृपति: श्रीमान् सर्वस्यपतिरूर्जित:।।”
भगवान-विष्णु को प्रसन्न करने का मंत्र-
“सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जगत सुप्तं भवेदिदम।
विबुद्धे त्वयि बुध्येत जगत सर्वं चराचरम।”
विष्णु क्षमा-मंत्र-
“भक्तस्तुतो भक्तपर: कीर्तिद: कीर्तिवर्धन:।
कीर्तिर्दीप्ति: क्षमाकान्तिर्भक्तश्चैव दया परा।।”
🙏ॐ नमोः भगवतेः वासुदेवाय🙏
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