धर्म-कर्म

आत्महत्या (अन्तिम-भाग)

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रेलगाड़ी ने अब पूर्णतः गति पकड़ ली थी, बस नींद ही नहीं आ रही थी ।

आत्महत्या, उसके कारण व उसके पाप-पुण्य में उलझे हम, ईश्वर द्वारा प्रदत्त दो हाथों की महिमा समझ रहे थे। सोच रहे थे कि स्वस्थ शरीर होते हुए भी स्वस्थ मन क्यों नहीं, बुद्धि से हार कैसे मान लेते हैं लोग। शायद अज्ञान मूल-कारण है।

“महाशय! एक बात बताइए, स्वस्थ शरीर होते हुए भी स्वस्थ मन क्यों नहीं होता ? बुद्धि में ऐसा क्या आता है कि आवेश में या अवसाद में आकर व्यक्ति आत्महत्या कर लेते हैं ?” महिला बोली

“इसी प्रश्न को ही आगे अगर बढ़ाया जाये तो यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि सब ईश्वर के हाथ है तो मानव स्वयं की हत्या कैसे कर सकता है ?” वो बोला

“इस बात को आप लोग ऐसे समझो कि आत्महत्या शब्द वस्तुतः गलत है।” मैं बोला “आत्महत्या का मतलब आत्मा की हत्या। परन्तु हमारी भगवद्गीता कहती है कि आत्मा ना मरती है ना पैदा होती है, वह तो अजर-अमर है, तो फिर उसकी हत्या कैसे ? अतः आत्मा की तो हत्या हो ही नहीं सकती। ,,,, यह शरीर है जो पैदा होता है और मरता भी वही है, हत्या भी अगर होती है तो वह शरीर की होती है, आत्मा की नहीं।”

“साहिब सब बात सही है, पर आत्मा-शरीर,,, बुद्धि, मन,,,, इनके भेद,,प्रकार, यह बड़ा कठिन विषय है और इसे समझना उससे भी मुश्किल। हमें तो सरल भाषा में समझाओ।” वो बोला ।

“तो समझो। क्रिकेट का खेल को सब समझते हो ना ?”

“क्रिकेट को हिन्दुस्तान में कौन नहीं समझता ?” वो हंस कर बोला

“तो क्रिकेट के खेल के हिसाब से समझाता हूँ । ,,, यह जीवन क्रिकेट का मैच समझो। हम सभी जीवित व्यक्ति खिलाड़ी हैं । मैच को नियंत्रित करने के लिए मैदान में अंपायर भी हैं, और बाहर बैठा थर्ड-अंपायर भी। बाहर बैठे टीम का मैनेजर, कोच, सलेक्टर मेम्बरान भी, और भी कई ,, साथ में दर्शक भी – सब के सब खिलाड़ियों पर नजर गड़ाये रहते हैं, मकसद सब का अलग-अलग। बाकि के बारे में फिर कभी बात करेंगे, फिलहाल मैदान में खेलने भेजे गये खिलाड़ी की बात समझते हैं, और यह समझते हैं कि हम बल्लेबाज़ी करने के लिये भेजे गये हैं, खेलना अनिवार्य है। सामने से परिस्थितियों की बाॅल आती है। कभी तेज-कभी स्पिन, कभी फुलटास-कभी हाफवाॅली और कभी शोर्टपिच। मौसम भी गर्म हो सकता है तो सर्द भी। हमें तो बस सामने से आती गेंद को खेलना ही है – कैसे खेलें वो हमारी काबिलियत। कई नराधम ऐसे होते हैं जो सोचते हैं, अरे यार, क्या करें इस गर्मी में खेल कर, कौन झेले इन तेज – बाॅडी लाईन बाउंसरों को, चलते हैं पवेलियन में आराम करेंगे। और, हिट-विकेट करके या आसान सा जानबूझकर कैच उछाल कर आउट हो जाते हैं, और चल देते हैं परिस्थितियों से या समस्याओं रूपी बाॅडी लाईन तेज बाउंसरों से घबरा कर पवेलियन की ओर आराम करने। ,,, कभी-कभी हम अपनी नादानी या बेवकूफी में भी अपना विकेट गंवा देते हैं,,,, पर यह भूल जाते हैं जिसने हमें खेलने भेजा था, वह बाहर बैठा मैनेजर या कोच सब देख रहा है और जानबूझकर परिस्थितियों से घबराये खिलाड़ी की हिट-विकेट हो या नादानी या बेवकूफी में आसानी से गंवाई गई विकेट, वो बड़ी गंभीरता से लेता है। ,,,, खिलाड़ी भूल जाता है कि यही मैच आखिरी नहीं, दूसरी ईनिंग भी आयेगी, लम्बी सीरीज़ के और मैच भी आयेंगे। और तब, परिस्थितियों से हारे खिलाड़ी को कोच या टीम-मैनेजर अगले मैच में टीम में तो रखेगा पर काम में लेगा पिच पर डटे- खेलने वाले खिलाड़ियों को पानी पिलाने का, बैट पहुंचाने का, ,, एक्स्ट्रा खिलाड़ी बतौर , ,,, । एहसास होगा, तब ज्यादा निराशा होगी। ,,, क्योंकर ऐसा हो। क्यों हम जानबूझकर, अपने से अपनी विकेट गंवायें, क्यों हिट-विकेट हों,,,क्यों आत्महत्या करें । महान बल्लेबाज वही जो सुनील गावस्कर की तरह बिना हेलमेट के भी तेज-खतरनाक-बाॅडीलाईन बाउंसरों का डट कर मुकाबला करे,,, फिर हेलमेट भी पहना जा सकता है। कुछ भी हो मैदान नहीं छोड़ना, हिट-विकेट नहीं करना ।”

और हम परिस्थितियों से लड़ने का जज़्बा लिए अपनी-अपनी सीट पर आराम करने चल दिए,, मन में संकल्प लिये कि मैच भी पूरा खेलना है ,,, कई-कई मैचों की अनेकानेक सीरीज़ खेलनी है। कभी होम-पिच का फ़ायदा मिलेगा तो कभी विपरीत परिस्थितियां,, कभी सामने से तेज बाउंसर आयेंगे, कभी लेग-स्पिन तो कभी आॅफ स्पिन, कभी फुलटास-कभी हाफ वाॅली- कभी शार्टपिच, कभी इन-स्विंग- कभी आउट-स्विंग। और कभी-कभी तो गुगली भी। हम बस अपने हिसाब की गेंद का इंतजार करें, आयेगी जरूर हमारे मुताबिक गेंद, और तब लगायें जोरदार छक्का । याद रखें हमें खिलाने वाला वो खिलाड़ियों का खिलाड़ी, वो कोच – वो मैनेजर हम पर भरोसा कर खेलने भेजता है मैंदान में, सलेक्ट करता है उन ग्यारह खिलाड़ियों में जो सामने से आती हर गेंद का सामना पुरजोर संकल्प के साथ करेंगे। पवेलियन में जाना निश्चित है,,,,, परन्तु हमें हमारी पारी जानबूझकर कर खत्म नहीं करनी और ना ही नादानी या बेवकूफी में, वरन एक अच्छी पारी खेल कर, निश्चित समय पर, एक बेहतरीन गेंद पर आउट होकर पवेलियन में जायें। तब ही कोच हमें नई पारी में बेहतर पोजीशन पर खेलने का मौका देगा। इससे हमारा मान बढ़ेगा, यश की प्राप्ति होगी, मोक्ष की प्राप्ति होगी।

रेलगाड़ी चले जा रही थी और हम अपनी-अपनी सीट पर सोने का प्रयास करने लगे।

– माथुर-चतुर्वेद श्रीविद्येश

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  • बख़ूबी से समझाया है आपने सधन्यवाद

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