धर्म-कर्म

साकार कि निराकार

(धर्म-कर्म, पांचवी कहानी) गाड़ी सरपट दौड़े जा रही थी, पता नहीं कब आंख लग गई और हम सब गहरी नींद… Read More

2 years ago

आत्महत्या (अन्तिम-भाग)

रेलगाड़ी ने अब पूर्णतः गति पकड़ ली थी, बस नींद ही नहीं आ रही थी । आत्महत्या, उसके कारण व… Read More

4 years ago

धर्म-कर्म – (चौथी कहानी)

आत्महत्या - भाग - 2 अब रेलगाड़ी खिसकी तो हम अपनी-अपनी सीट पर जाने लगे। वो बोला "नींद ना रही… Read More

4 years ago

धर्म-कर्म (चौथी कहानी)

"आत्महत्या" - भाग -1 रेलगाड़ी रफ्तार पकड़ चुकी थी, रात भी चरम पर थी । अलसाई आँखों में नींद आने… Read More

4 years ago

हमसफ़र | Companion

रेल पटरी पर जिन्दगी की तरह सरपट दौड़ रही थी और हम अपनी-अपनी सीट पर लेट रहे थे। अंधेरा घिर… Read More

4 years ago

“मजबूरी का पिता”

धर्म-कर्म - भाग- 2 हम दोनों साइड-लोअर सीट पर बैठे बात कर रहे थे । अब गाड़ी स्टेशन पर रूकने… Read More

4 years ago

धर्म-कर्म | Dharm Karm

धर्म-कर्म ट्रेन में सफर करते वक्त पास बैठे यात्री ने पूछा- "तुम्हारा धर्म क्या है ?"मैंने पूछा-"कब ?"उसने कहा -… Read More

4 years ago

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