एक युग था, तब वर्ण नहीं था, जाति नहीं थी, कबीले थे।
किसी का गणगोत्र [ totem ] नाग था, कोई सुपर्ण था, कोई जटायु था, मत्स्य, कूर्म, गज, सिंह, महिष, मयूर, अश्व, हंस, शुक, काक, नंदी, वाराह आदि
हजारों गणगोत्र [ totem ] थे।
विष्णु के पहले अवतार मानवेतर हैं >> मत्स्य,कूर्म ।
युगान्त-प्रलय के समय एक सींगवाले मत्स्य का प्रादुर्भाव हुआ ,उसने नाव में बैठे ,,,,,, मनु की रक्षा की।
समुद्र-मन्थन के समय कूर्म[कछुआ] ने मन्दराचल को पीठ पर धारण किया।
इसके बाद अर्द्ध-मानुषी > नृसिंह-वाराह।
नरसिंह [मुख सिंह का शरीर आदमी का]
वाराह [मुख शूकर का और बाकी शरीर आदमी का]
हिरण्याक्ष जब धरती की चटाई बना कर पाताल ले गया ,तब वाराह ने हिरण्याक्ष का वध करके अपने एक दंष्ट्र पर धरती को धारण किया,और शेषनाग के फण पर प्रतिष्ठित कर दिया।
हिरण्यकशिपु जब मदान्ध हो गया , अत्याचार करने लगा , अपने को ईश्वर
मानने लगा तथा समस्त प्रजा को आदेश दिया कि > मेरे अतिरिक्त कोई भी ईश्वर नहीं हो सकता मैं ही ईश्वर हूँ !
तब नृसिंह ने हिरण्यकशिपु का वध किया !
आगे हयग्रीव-अवतार [चौबीस अवतारों में] है > हयग्रीव [मुख घोडा का, शरीर आदमीका]
आगे देखें तो –
गणेश [मुखहाथी का, शरीर आदमी]
हनुमान[मुख वानर का,शरीर आदमी]।
फिर वाहन को देखें, कुत्ता>भैरव, गरुड>विष्णु, महिष>यम, उलूक>लक्ष्मी, बैल>महादेव।
गज-ग्राह युद्ध, नाग-गरुड-युद्ध प्रसिद्ध हैं।
राम कथा का स्रोत काक भुशुंडि है।
भगवत गाथा का स्रोत शुक है।
तीतर [तैत्तिरीय ] नागसभ्यता बहुत व्यापक है। नाग शक्तिशाली थे । नंदी[बैल], जटायु, मंडूक, महिष, मयूर, आदि गणगोत्र[टोटम] हैं!
– सौजन्य से डॉ0 श्री राजेन्द्र रंजन जी चतुर्वेदी
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